सिंचाई का बकाया पैसा उपज के भुगतान में से काटने की तैयारी
भोपाल। फसल सिंचाई के एवज में किसानों से लिया जाने वाला पैसे की वसूली करने में नाकामयाब रहे जल संसाधन विभाग ने अब इस मामले में हाथ खड़े कर दिए हैं। दरअसल इस मामले में विभाग के अफसरों द्वारा तमाम प्रयासों के बाद भी इसकी वसूली नहीं हो सकी है। यही वजह है कि अब बकाया राशि वसूली के लिए मंडी समितियों की मदद ली जा रही है। जिसके तहत अब किसान मंडियों में अनाज बेचने जाएगा तो उसके उपज के भुगतान में से सिंचाई कर की राशि काट ली जाएगी। दरअसल किसानों पर सिंचाई विभाग का 474 करोड़ 19 लाख रुपए बकाया है। गौरतलब है कि जल संसाधन विभाग द्वारा बनाए गए बांधों से नहरों के जरिए किसानों को सिंचाई के लिए पानी मुहैया उपलब्ध कराया जाता है। पानी के एवज में किसानों को सिंचाई जल कर के रूप में टैक्स देना होता है, लेकिन यह देखने में आया है कि किसानों द्वारा सिंचाई जल कर की राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है। विभागीय सूत्रों के अनुसार किसानों पर जल कर के रूप में अक्टूबर 2019 तक किसानों पर 474 करोड़ 19 लाख रुपए है। इनमें से केवल 13.51 करोड़ रुपए की वसूली हो सकी है। यह राशि लगातार बढ़ती जा रही है। विभाग ने इसकी वसूली के लिए शासन को प्रस्ताव भेज दिया है, जो फिलहाल विचारधीन है।
किसानों की जानकारी जुटाने लिखा पत्र
विभाग के प्रमुख अभियंता मदन सिंह डाबर ने सभी कार्यपालन यंत्रियों को पत्र लिखकर निर्देश दिए हैं कि उनके क्षेत्र के तहत आने जलाशयों के कमांड क्षेत्र में आने वाले किसानों की सूची बकाया राशि सहित मंडी समितियों में उपलब्ध कराएं, ताकि किसानों द्वारा मंडी में अनाज विक्रय के समय बकाया राशि की वसूली कर विभाग के खाते में जमा कराई जा सके। इसके साथ ही जिला, तहसील और ब्लाक स्तर पर राजस्व विभाग के अनुविभागीय अधिकारी एवं तहसीलदार के सहयोग से कैम्प लगाकर गांवों में प्रचार-प्रसार कर सिंचाई राजस्व वसूली जमा कराने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करें।
माफी के चक्कर में नहीं करते भुगतान
राजनीतिक दबाव के चलते किसान सिंचाई जल कर की राशि का भुगतान नहीं करते हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि असल में राजनीतिक दल किसानों से यह वादा करते हैं कि उनका कर्ज माफ कर दिया जाएगा। कई मौके ऐसे भी आए जब सरकार ने उनके यह राशि माफ की है। यही वजह है कि वे भुगतान नहंी करते हैं। जब विभाग के अधिकारी राशि जमा कराने के लिए किसानों के पास जाते हैं तो किसान राजनीतिक दल के झंडे लेकर जल संसाधन के दफ्तरों में धरना देकर बैठ जाते हैं। यानी राजनीतिक दबाव बनाते हैं। जिसके चलते विभाग भी इन किसानों पर ज्यादा दबाव बनाने में संकोच करते हैं।