महात्मा बुद्ध के कथन ने बदल दी अंगुलिमाल की जिंदगी
मेला रंगमंच हुआ 'अंगुलिमाल' का नाट्य मंचन
ग्वालियर। जंगल से गुजरने वाले राहगीरों को लूटने के बाद उनकी उंगली काटकर गले में माला बनाकर पहनने वाला खूंखार दस्यु महात्मा बुद्ध की बात सुनकर आत्मग्लानि से भर जाता है और उनसे क्षमा मांगकर बुद्ध की शरण में आकर उनका शिष्य बन जाता है। इसके बाद वह बहुत बड़ा साधु बनता है। यह कहानी बुद्ध वेलफेयर सोसायटी द्वारा गुरुवार को मेला रंगमंच पर मंचित नाटक ‘अंगुलिमाल’ की है। इसका निर्देशन प्रशांत चव्हाण ने किया। नाटक शुरू होने से पहले मेला संचालक व सांस्कृतिक कार्यक्रम संयोजक नवीन परांडे, विजय सिंह बौद्ध, खेमचंद कोली, पीसी उचाडिया, डॉ भारत वारसी आदि ने मां सरस्वती की प्रतिमा व डॉ बीआर अम्बेडकर के चित्र पर माल्यार्पण एवं भगवान बुद्ध को पुष्प अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया। नाटक में बताया गया है कि प्राचीनकाल में मगध देश की जनता में खूंखार डाकू अंगुलिमाल का आतंक छाया हुआ था। अंधेरा होते ही लोग घरों में कैद हो जाते थे। अंगुलिमाल मगध देश के जंगल में रहता था। जो भी राहगीर उस जंगल से गुजरता था, वह उसे रास्ते में लूट लेता और उसे मारकर उसकी एक उंगली काटकर माला के रूप में अपने गले में पहन लेता था। इसी कारण लोग उसे ‘अंगुलिमाल’ कहते थे।
महात्मा बुद्ध को सुनाई पीड़ा
एक दिन उस गांव में महात्मा बुद्ध आए। लोगों ने उनका खूब स्वागत-सत्कार किया। महात्मा बुद्ध ने देखा वहां के लोगों में कुछ डर-सा समाया हुआ है। उन्होंने लोगों से इसका कारण जानना चाहा। लोगों ने बताया कि उनके डर और आतंक का कारण डाकू अंगुलिमाल है। वह निरपराध राहगीरों की हत्या कर देता है। महात्मा बुद्ध ने मन में निश्चय किया कि उस डाकू से अवश्य मिलना चाहिए।
जंगल पहुंचे बुद्ध
बुद्ध जंगल में जाने लगे तो गांव वालों ने उन्हें बहुत रोका, क्योंकि वे जानते थे कि अंगुलिमाल से बच पाना असंभव है। लेकिन बुद्ध अत्यंत शांत भाव से जंगल में चले जा रहे थे। तभी पीछे से एक कर्कश आवाज कानों में पड़ी- ‘ठहर जा, कहां जा रहा है?’ बुद्ध ऐसे चलते रहे मानो कुछ सुना ही नहीं। पीछे से और जोर से आवाज आई- ‘मैं कहता हूं ठहर जा।’ बुद्ध रुक गए और पीछे पलटकर देखा तो सामने एक खूंखार काला व्यक्ति खड़ा था। लंबा-चौड़ा शरीर, बढ़े हुए बाल, एकदम काला रंग, लंबे-लंबे नाखून, लाल-लाल आंखें, हाथ में तलवार लिए वह बुद्ध को घूर रहा था। उसके गले में उंगलियों की माला लटक रही थी। वह बहुत ही डरावना लग रहा था।
नहीं डरे महात्मा बुद्ध
बुद्ध ने शांत व मधुर स्वर में कहा- ‘मैं तो ठहर गया। भला तू कब ठहरेगा?’ अंगुलिमाल ने बुद्ध के चेहरे की ओर देखा, उनके चेहरे पर बिलकुल भय नहीं था, जबकि जिन लोगों को वह रोकता था, वे भय से थर-थर कांपने लगते थे। अंगुलिमाल बोला- ‘हे सन्यासी! क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा? देखो, मैंने कितने लोगों को मारकर उनकी उंगलियों की माला पहन रखी है।’
बुद्ध ने दी अंगुलिमाल को नसीहत
बुद्ध बोले- ‘तुझसे क्या डरना? डरना है तो उससे डरो जो सचमुच ताकतवर है।’ अंगुलिमाल जोर से हंसा – ‘हे साधु! तुम समझते हो कि मैं ताकतवर नहीं हूं। मैं तो एक बार में दस-दस लोगों के सिर काट सकता हूं।’ बुद्ध बोले – ‘यदि तुम सचमुच ताकतवर हो तो जाओ उस पेड़ के दस पत्ते तोड़ लाओ।’ अंगुलिमाल ने तुरंत दस पत्ते तोड़े और बोला – ‘इसमें क्या है? कहो तो मैं पेड़ ही उखाड़ लाऊं।’ महात्मा बुद्ध ने कहा – ‘नहीं, पेड़ उखाड़ने की जरूरत नहीं है। यदि तुम वास्तव में ताकतवर हो तो जाओ इन पत्तियों को पेड़ में जोड़ दो।’ अंगुलिमाल क्रोधित हो गया और बोला – ‘भला कहीं टूटे हुए पत्ते भी जुड़ सकते हैं।’ महात्मा बुद्ध ने कहा – ‘तुम जिस चीज को जोड़ नहीं सकते, उसे तोड़ने का अधिकार तुम्हें किसने दिया? एक आदमी का सिर जोड़ नहीं सकते तो काटने में क्या बहादुरी है? अंगुलिमाल अवाक रह गया। वह महात्मा बुद्ध की बातों को सुनता रहा। एक अनजानी शक्ति ने उसके हृदय को बदल दिया। उसे लगा कि सचमुच उससे भी ताकतवर कोई है। उसे आत्मग्लानि होने लगी।
महात्मा की शरण में पहुंचा डाकू
वह महात्मा बुद्ध के चरणों में गिरकर बोला- ‘हे महात्मन! मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं भटक गया था। आप मुझे शरण में ले लीजिए।’ भगवान बुद्ध ने उसे अपनी शरण में लेकर अपना शिष्य बना लिया। आगे चलकर यही अंगुलिमाल बहुत बड़ा साधु हुआ
पात्र— सुत्रधार -वीर मौरे ,न्यानेश्वरी चौहान, यशस्वी मौखरीवाले
गौतम बुद्ध -गौरव सन्तवानी
अंगुलिमाल -प्रशान्त चौहान
राजा -नरेन्द्र सक्सेना
मंत्री -नीरज श्रीवास्तव
त्रिजुगिया -भारती मौखरीवाले
सेनापति -जितेन्द्र यादव
ग्रामवासी -कार्तिक गेवराईकर, देवांश जैन, रोनित चव्हाण, विक्रम भगत,, ऋषभ शर्मा, लक्की चांदवानी, निशा वर्मा, प्रीति रामानन्द, दीक्षा रामानन्द
मैनेजर -ऋतुराज चव्हाण, अशोक सेंगर।